पिता के लिए कविता
कोमल ह्रदय शांत भाव से रहते
मुद्रा रहती सदा विचारणीय
अदम्य , शूर , साहसी व्यक्तित्व लिए
प्रचंड तेज़ पुंज आभा है जिनके मुखमंडल पर
वे ही तो हमसबके पालनहार हैं !
कठोर अनुशासन और आदर्शों को अपनाकर
निडर भाव से न्याय दिया
प्रतिरोधी को भी तुष्ट किया
न्यायधीश की कुर्सी सन्मानी !
स्वतन्त्रता संग्राम में दिया योगदान
स्वातन्र्य वीर सैनानी कहलाये
छुआ -छू त ; ऊँच -नीच के भेद-भाव को
कभी न मन ने इनके माना
सामान भाव से सबको अपना ही जाना !
छोटे से छोटे कामों को करने में हिचक नहीं आई
समय के संग छक कर दौड़ लगाईं
पत्नी के कष्टों का विष पी कर
बच्चों में सुख का अमृत बांटा !
सहनशीलता , आत्मसम्मान से रहना
हम सबको ही सिखलाया
करो परिश्रम अंधियारों से हार न मानो
यह भी हरदम ही बतलाया
जीवन -पथ अति सुगम बनाया !
पकड़ हाँथ विज्ञान और कानून का
साहित्य में रूचि विशेष दिखाई
फिर हिंदी गर्न्थों की हुई लिखाई
एल एल एम् ,,साहित्य -रत्न की उपाधि पाई
महत्ता शिक्षा की दर्शाई
स्वावलंबी होने की रूचि जगाई !
मृदु -वचनों से आकर्षित कर
दुश्मन को भी दोस्त बनाया
सहज सरल जीवन अपनाया
अबला को सबला रूप बताकर
नारी शक्ति की महिमा जतलाई !
ऐसे प्रखंड , प्रबुद्ध , बुद्धिशाली
दूरदर्शी पिता के आशीषों से
तृप्त हुई उनकी संतानें सारी
कहाँ तक गुण इनके गिनवाएं
ख्याति हर दिन बढती जाए
साया जब तक साथ रहेगा
बच्चों को सुखों का अहसास रहेगा !!!!!!!!
मधु प्रधान
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